Tuesday 16 February 2016


हंगामा है क्यों बरपा 

अचानक कुछ हो गया है. हवा का मिज़ाज बिगड़ा हुआ है.  सब कुछ पहले जैसा होते हुए भी चर्चा का बाजार इस कदर गर्म हैं कि मानो अगर अभी नहीं संभाले तो कुछ अनहोनी हो जाएगी  . क्यों  बरपा है यह हंगामा।

सांप्रदायिक झगडे पहले भी होते थे और उनके पीछे होता था कोई ठोस कारण। यह घटनाएँ तब भी मानवता के लिए बदनुमा दाग थी और आज भी है. लेकिन इस बार तस्वीर थोड़ी अलग है. पहले इन घटनाओं के पीछे कोई कारण होता था, समान्यजन इसका हिस्सा होते  थे, जनमानस क्या सोच रहा है, क्या महसूस कर रहा है, यहभी पता चलता था. पर इस बार फ़िज़ा कुछ और है. हंगामा तो बरपा होता है, रातों रात बिना किसी ठोस बात के बात भी बन जाती है. चिंगारी बिना वजह भड़कती है और देखते देखते आग बन जाती है. राजनीती होती है शुरू और पीछे रह जाते हैं मुद्दे। वे मुद्दे जो कभी मुद्दे थे ही नहीं। बनावटी वजहें, असली राजनीती का धरातल बनती हैं और आम आदमी सोचता रह जाता हैं कि क्या सच में सहिष्णुता समाप्त हो गयी है. मेरे आस पास तो सब वैसा ही है.